संयम की जीत

ebook

By Omprakash Kshatriya

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'' जैसे ही मैं ने आप का चेहरा अपनी ओर किया. मैं चौंक गई. वे आप नहीं थे. यह देख कर मैं डर गई. मैं ने उसे दूर हटाने की कोशिश की. मगर, वह मुझ से जम कर चिपट गया था. वह केवल आईलवयू आईलवयू कहे जा रहा था. उस की सांसे बहुत गरम थी.

'' मैं ने बहुत कोशिश की. उस से छूटने की. मगर, उस की पकड़ से छूट नहीं सकी. उसे वास्ता दिया कि मैं एक ब्याहता स्त्री हूं. मैं अपने पति के लिए बैठी थी. मगर, वह नहीं माना. मैं बेबस सी उस की बांहों में छटपटाती रही.

'' उस ने अपने मन की मरजी पूरी कर ली. तब उस ने मुझे छोड़ा. मगर, तब वह मुझे छोड़ कर रोने लगा. उसे इस बात का दुख था कि उस ने अपने मनोवेग में वह सब कुछ कर लिया जो उसे नहीं करना चाहिए था.

'' वह मेरे पैर में लिपट गया. मुझे माफ कर दो भाभी. वह कहे जा रहा था. मगर, मेरे मुंह से...

संयम की जीत